Monday, June 8, 2020

सांवरे सत्यकी वेदी पर और एक नाम :मुरारी बापू
  - तखुभाई सांडसुर (वेलावदर)
उत्तरी भारतके ज्यादातर लोग मुरारीबापूको कथावाचक या कथाव्यासके रूपमें ही जानते हैं। कभी गलत सोच या कोई साजा तेजो दे्व्षके प्रारूप पूज्य मुरारीबापू के पूरे व्यक्तित्व को जाने बिना खयाल बना लेते हैं। इसलिए बापूके जीवनके बहुत सारे पहलुओंको जाननाभी काफी आवश्यक और जरूरी है। उनकी कथामें आनेवाले लोग या तो उनके कथा प्रवचनको सुननेवाले लोगोंका तांता बना रहता है। लेकिन कुछ लोग को दूसरोंकी या तो जो पहुंचे हुए हैं, उनकी किरकिरी करने में विकृत आनंद लेना पसंद पड़ता है ।आजकल सोशल मीडियाके चलते उनकी संख्या काफी बढ़ती चली है। कुछ लोग ऐसे ही यूट्यूब, इंस्टाग्राम पर अपनी गलत पहचान बनाकर कुछ ऐसे ही पोस्ट डालते हैं ताकि उनको ज्यादा से ज्यादा व्यू प्राप्त हो। यह बात मानवता या तो मानवीय मूल्यों के खिलाफ और अधर्म को आह्वान करने बराबर हैं।
  पू.मुरारीबापूके जीवनके सात प्रमुख पहलुओं को उजागर करके अवगत कराना एक रचनात्मक जिम्मेदारी की तौर से प्रस्तुत कर रहे हैं। वैश्विक जगतमें धर्म से जीवन देने वाले योगी के रूप में उनको समझना पड़ेगा। अगर हम किसी गलतफहमी या तो गलत सोच को बढ़ावा देते हैं तो हम वह गलती कर रहे हैं कि हम कुछ अच्छा तो नहीं कर पाते लेकिन असत्य का पक्षधर बनके अच्छाई को दफन करने का सनातनी पाप अपने ऊपर ले रहे हैं।
बापू के जीवन का प्रथम पहलू है सादगी ।उन्होंने कभी जीवनमें खाने-पीने या रहन-सहन में दिखावा को या तो भौतिकता को कभी बल नहीं दिया। गांधीजी के जीवन के इस आदर्श को अपने पास रखते हुए जब से वह पहचानने लगे तब से खादी पहनते हैं । दुनिया भरमें आज उनको कथा प्रवचन के संदर्भ में आना जाना रहता है ।फिर भी वह आज अपने पैतृक गांव तालगाजर्दा जो गुजरात में महुआ के पासमें पड़ता है वहां ही रहते हैं। उनको मिलना हर दिन संभव होता है ।अपने चित्रकूट आश्रममें सुबह और शाम सभी लोगों को मिलते हैं। और किसी के पाससे एक भी पैसा कोई आश्रम में रखना चाहे तो भी उनका स्वीकार नहीं होता है ।और सभी लोगों के लिए वहां समान व्यवस्था की हुई है यह भी बता दे की उनका कोई निजी सचिव नहीं है। और ना तो उनका कोई अलग पंथ या संप्रदाय है ।सनातनी संप्रदाय से अपना ताल्लुक रखते हैं और कई बार उन्होंने कहा भी है और यही परंपराको एकजुट करनेमें उनका काफी बड़ा प्रदान भी रहा है। और यह बात भी जानना जरूरी है कि बापू ने मंदिरों को बढ़ाने के बजाए अपनी सेवा मानवता की प्रति समर्पित कि हुई है। आरोग्य के मंदिर शिक्षा संस्थान को बल दिया,करोड़ोंके अनुदान दिलवाये। फिर भी अपने आप को सबसे अलिप्त रखते हैं। सनातनी मानव धर्म एक लक्ष्य की ओर हमें लिए चलते है कि मानव ही सबसे ऊपर है और उनमें ही परमात्मा का वास है ।मजहब जो भी हो चाहे इस्लाम हो या तो इसाई हो किसीभी धर्म का ,मजहब का ,संप्रदाय का खंडन मंडनमें या तो उनके प्रति दूर्भाव रखने में वह अपने आप को बचाए रखते हैं ।जिसका  ईस्ट जो भी हो वह उन्हें मुबारक उनमें से उनकी श्रद्धा को तोड़ने का मकसद बापू की डायरी में कतई नहीं है। गांधी का एक और व्रत है अपरिग्रह ,बापू इसी को लेकर के अपने पास कुछ भी नहीं रखते, और ना ही किसी के पास से कथा प्रवचनका कोई मूल्य या तो कोई दूसरी तरह से उनका लाभ लेना उचित नहीं समझते ।आज दुनिया में कोई भी संत ऐसे हो सकते हैं क्या जो अपने चरणों में या तो दूसरी तरह से किसी को ₹1 भी रखने की मना कर रहे हो !!!मुरारी बापू वह कर रहे हैं !!उनका पैतृक गांव में आश्रम भी बहुत बड़ा नहीं है बिल्कुल छोटा है।कीसी वस्तु या चीज का संग्रह करना उनका स्वभाव नहीं है ।वह आज भी अपने आश्रम से जो भी लोग छोटी बड़ी याचना करके आते रहते हैं उनको अपनी प्यार प्रसादी बांटते रहते हैं। इतना ही नहीं देश और दुनिया में आई हुई हर मुसीबत में बापू ने अपना हाथ बढ़ा कर पहल की हुई है। वह सब लोग जानते हैं। एक और बात और चौथा पहलू यह है कि उनके पास कोई भी व्यक्ति छोटा बड़ा नहीं है सबको समान प्यार उन्हीं की तरफ से मिलता ही रहता है। बहुत सारे उनके जीवन के ऐसे प्रसंग भी हैं जो बापू ने अपने निजी स्वभाव का परिचय देते हुए वंचित है ,जो पीड़ित है उनको पनाह देते हुए करुणा प्रगट करी की है। पूरे भारत में वंचित की पीड़ा को जानते हुए चाहे वह किन्नर हो, गणिका हो ,विचरती जाती हो या पिछड़ी जातियां उनके लिए कथा के माध्यम से बहुत सारी मशक्कत करते हुए हैं समाज की मुख्यधारा में उनको अच्छा स्थान दिलाने में या तो सम्मान बढ़ाने में मुरारी बापू की भूमिका छोटी नहीं है। जो लोग गुजरात से ताल्लुक रखते हैं उनको पता है कि उनकी ओर से गुजराती साहित्य और संस्कृत साहित्य की काफी सेवा अस्मिता पर्व और संस्कृत पर्व कार्यक्रमों से प्रवाहित होती रही है ।ऐसा ही नहीं हमारे कला जगत के बहुत सारे लोगों को सद्भावना ,हनुमंत और दूसरे अवार्ड भी दिए जाते हैं ।जो काम सरकार या तो साहित्यिक संस्थाओं को करना चाहिए वह बापू ने बहुत सालों से किसी भी नीजी मकसद के बिना किया है।
   उनका जीवन का अंतिम बिंदु राम और रोटी हैं ।वह आज 800 से ज्यादा कथाओं को संपन्न कर चुके हैं और वह जहां भी कथा करते हैं चाहे वह भारत हो या यूरोप, अमेरिका अफ्रीका वहां भी रोटी खिलाने से नहीं जीजकते ।वह इसलिए कि काठियावाड़ में एक कहावत है रोटलो त्या प्रभु टुकड़ों। बापूके आश्रममें भी सदाव्रत चालू रहता है। उनके घर से कोई भी भूखा वापस नहीं जाता ।रामकथा उनका जीवन है और जब तक वह व्यास गादी पर होते हैं तब तक बैठने के बाद चाहे वह तीन घंटा हो या चार हो उठते भी नहीं और पानी भी नहीं पीते हैं ।और भी दूसरे उनके अपने नियम है जो कि वह राम अनुष्ठान के रूप में जाने जाते हैं। रामकथा ही उनके प्रवचन का मुख्य विषय रहा है फिर भी आप दूसरे ग्रंथों की भी चर्चा और संवाद करते रहते हैं।
 मुरारीबापू निंबार्की परंपरा से हैं ।और वह परंपरा कृष्ण को प्रमुख रूप में प्रस्तुत करती हैं। हमारे पास हिंदुत्व है लेकिन वह हिंदुत्व हैं जो हमें सब मजहब को समान देखना चाहते हैं। और हर मानव में ईश्वर का दर्शन करते रहते हैं। रूढ़िवादी परंपरा से ऊपर उठकर के हम यह विचारधारा में बहुत आगे हैं जो कि दूसरे मजहब में वह लचीलापन कम दिखाई दे रहा है। हमारे ग्रंथों में भी इस बात को लेकर के बहुत सारी चर्चा हैं और वह संवाद भी करते हैं हम क्यों अपने मजहब, धर्म को प्रमुख रूप देकर के दूसरे धर्मों की निंदा करें ?ये काम हमारा नहीं है हिंदूत्व वह नहीं है जो दूसरों को कोशे,दूसरों को पीड़ा दे ,दूसरों को जीना कठिन कर दे ,विरोध करें, हिंसा फैलाएं ,वह हमारा मजहब में कतई नहीं है ।हिंदुत्वकी व्याख्या बदलने वाले और कट्टरता को बढ़ावा देने वाले लोगों की संख्या आज दिन-ब-दिन बढ़ती जा रहे हैं ।वह हमारे राष्ट्र के लिए बहुत खतरा बन सकती हैं ।हम अमेरिका या दूसरे देशों से क्यों नहीं सीख पाते की एक काले आदमी को पुलिस ने मार दिया तो सारे अमेरिका की पुलिस अपनी इस भुल की क्षमा मांगते हुए अपना हथियार नीचे कर देती हैं ,वह है उनकी संवादीता । अब बात को भी हमें समझना पड़ेगा कि हमारे देश में दूसरे धर्म के बहुत सारे लोग हैं जिससे विसंगति हमें कहा ले जायेगी?और हमारे मजहबी सोच का बहुत बड़ा विघटन कर रहें हैं।
      वैसे तो बापू नहीं चाहते की उनके बोलने से या रहन-सहन से कोई विवाद खड़ा हो जाए। अगर वो जाता है तो वह अपनी क्षमा मांग लेते है । वह आज भी किसी के दिल को कोई भी छोटी बड़ी ठेस पहुंचाना नहीं चाहते ।इसलिए तो जब-जब ऐसे प्रसंग आए तब तब पूज्यश्री ने अपना पक्ष रखकर के ईश्वर को आगे बढ़ाया और बहुत सारे प्रसंगों में वह कहते रहे हैं कि मैं तो भला एक छोटा साधु हूं, मानव हु अपने आप को किसी भी बड़े पद पर या तो बड़ा सम्मान लेने का कोई भी मकसद नहीं रखते हैं। और सबको प्यार, करुणा बांटते रहते हैं, वही मुरारी बापू है।  फिर भी कहना पड़ेगा कि यह समाज या दुनियादारी सत्य के रास्ते पर, मार्ग पर चलने वाले लोगों को बहुत कष्ट दे रही हैं। सोक्रेटीसको जहर दिया और गांधी को गोली मारी, तो इसमें मुरारी बापू क्या है ?उसको भी यह दुनिया कैसे छोड़ सकती हैं भला !इसलिए हम कह सकेंगे की सांवरे सत्यकी वेदी पर एक और नाम मुरारीबापू का जुड़े जा रहा है और बापू की आंखें नम होकर उनकी और करुणा बढ़ा रही है।
  वहां देर हो भला, लेकिन अंधेर कि उम्मीद कभी नहीं है।

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